- पृष्ठभूमि
- 11 जनवरी, 2020 को तेजस के नौसैनिक संस्करण की विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य पर सफल अरेस्टेड लैंडिंग कराई गई।
- यह पहला अवसर है, जब भारत में निर्मित लड़ाकू विमान, विमानवाहक पोत पर उतरने और पुनः उड़ने में सफल रहा है।
- सितंबर, 2019 में तेजस की गोवा में शोर बेस्ड टेस्ट फैसिलिटी (Shore Based Test Facility) पर शार्ट अरेस्टेड लैंडिंग (Short Arrested Landing) करने में सफलता हासिल की थी।
- इससे पूर्व मिग-29K, नौसैनिक संस्करण का प्रयोग आईएनएस विक्रमादित्य पर उतरने और उड़ाने (Ski-take off) में किया जा रहा है।
- ज्ञात हो कि विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य पूर्व सोवियत संघ के एडमिरल गोर्शकोव का नया नाम है, जिसे वर्ष 2013 में भारत द्वारा रूस से खरीदा गया था।
- उद्देश्य
- भारतीय नौसेना में स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के साथ ही नौसैनिक क्षमता में वृद्धि करना।
- तेजस
- वर्तमान में भारतीय वायु सेना तेजस विमानों का प्रयोग कर रही है।
- भारतीय वायु सेना में तेजस को सर्वप्रथम वर्ष 2016 में शामिल किया गया था, जबकि तेजस के नौसैनिक संस्करण का निर्माण वर्ष 2012 में किया गया।
- तेजस का निर्माण कार्य डीआरडीओ (DRDO), एचएएल (HAL), एडीए (Aeronautical Development Agency) और सीएसआईआर (CSIR) आदि के द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है।
- यह एक सुपरसोनिक लड़ाकू विमान है, जो 50000 फीट की ऊंचाई पर उड़ सकता है।
- एचएएल (HAL) ने तेजस विमान को जैमर प्रोटेक्शन तकनीक से लैश किया है ताकि दुश्मन की सीमा के समीप उसका संचार (Communication) जाम न हो पाए।
- अरेस्टेड लैंडिंग क्या है?
- सामान्यतः लड़ाकू विमानों को लैंडिंग करने और उड़ान भरने के लिए 1000 मीटर रनवे की आवश्यकता होती है।
- लड़ाकू विमान जमीनी घर्षण के द्वारा लगने वाले बल के फलस्वरूप धीमे होते जाते हैं एवं अंततः रुक जाते हैं।
- विमानवाहक पोतों की लंबाई सामान्यतः 150-200 मीटर होती है, अतः लड़ाकू विमानों को उतरने के लिए अरेस्टेड लैंडिंग (Arrested landing) तथा उड़ान भरने के लिए स्की-जंप रैम्प (Ski-Jump Ramp) तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
- अरेस्टेड लैंडिंग तकनीक के माध्यम से लड़ाकू विमानों को 100 मीटर के अंदर ही रोका जा सकता है।
- स्की-जंप रैम्प तकनीक के माध्यम से लड़ाकू विमान 200 मीटर रनवे के प्रयोग से उड़ान भर सकते हैं।
- अरेस्टेड लैंडिंग में लड़ाकू विमानों को रोकने के लिए तीन या चार लचीले तारों (Stretchable wire) का प्रयोग होता है।
- यह तार सामान्यतया स्टील (Steel) के बने होते हैं।
- सभी तार एक-दूसरे से लगभग 15 मीटर की दूरी पर लगे होते हैं।
- अरेस्टेड लैंडिंग के लिए लड़ाकू विमानों में टेलहूक (Tailhook) का प्रयोग किया जाता है।
- टेलहूक लड़ाकू विमान के पिछले हिस्से में लगा होता है, उतरते समय लड़ाकू विमान का पायलट टेलहूक को किसी एक तार में फंसा देता है।
- टेलहूक के तार में फंसते ही लड़ाकू विमान 100 मीटर के भीतर रुक जाता है।
- अरेस्टेड लैंडिंग करते समय पायलट लड़ाकू विमान की क्षमता को अधिकतम बनाए रखता है ताकि यदि टेलहूक किसी तार में न फंसे, तो वह पुनः उड़ान भर सके।
- इसी प्रकार उड़ान भरने के लिए विमानवाहक पोत के डेक (Deck) को एक नियत कोण पर (समान्यतया 9o-14o) उठा हुआ बनाया जाता है, जिससे लड़ाकू विमानों का उड़ान भरना आसान हो जाता है।
- सामान्यतया अरेस्टेड लैंडिंग दो प्रकार की होती है। पहली स्टोबार (Short Take-Off But Arrested Recovery : STOBAR) तथा दूसरी कैटोबार (Catapult- Assisted Take-Off Barrier Arrested Recovery : CATOBAR)।
- स्टोबार, कैटोबार की अपेक्षा कम खर्चीली प्रणाली है, परंतु यह केवल उच्च थ्रस्ट और भार अनुपात वाले लड़ाकू विमानों के लिए ही कारगर है।
- वर्तमान परिप्रेक्ष्य
- वर्तमान में विमानवाहक पोत से उड़ने तथा उतरने में सक्षम विमानों का निर्माण करने वाले देश अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस तथा यूके (UK) हैं।
- भारत इस तरह के विमानों का निर्माण करने वाला छठा देश है।
- ज्ञात हो कि वर्तमान में भारत के पास एकमात्र विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य है।
- भारत द्वारा पूर्ण रूप से स्वदेश में विकसित विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) है, जिसका समुद्री परीक्षण अभी लंबित है।
- विक्रांत का समुद्री परीक्षण वर्ष 2020 में संभावित है।
- INS विक्रांत
- विक्रांत का कुल भार 40,000 टन है।
- यह 262 मीटर लंबा और 60 मीटर चौड़ा है।
- इस पर कुल 40 लड़ाकू विमान संचालित किए जा सकते हैं।
- इसमें लड़ाकू विमानों के उतरने एवं उड़ने के लिए स्टोबार (STOBAR) प्रणाली का प्रयोग किया गया है।
INS विक्रमादित्य पर तेजस की सफल लैंडिंग