कोयला गैसीकरण एवं द्रवीकरण



  • पृष्ठभूमि  

  • 31 अगस्त‚ 2020 को केंद्रीय कोयला और खाद्य मंत्री द्वारा ‘कोयला गैसीकरण और द्रवीकरण’ पर आयोजित एक वेबिनार को संबोधित किया गया।  

  • भारत ने वर्ष 2030 तक 100 मिलियन टन कोयला गैसीकरण का लक्ष्य निर्धारित किया है‚ जिसमें 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया जाएगा।  

  • ईंधन के स्वच्छ स्रोतों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए‚ सरकार ने गैसीकरण के लिए इस्तेमाल होने वाले कोयले की राजस्व हिस्सेदारी में 20 प्रतिशत की रियायत प्रदान की है।

  • इससे सिंथेटिक प्राकृतिक गैस‚ ऊर्जा‚ ईंधन‚ उर्वरकों के लिए यूरिया और अन्य रसायनों के उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।

  • वर्तमान परिदृश्य  

  • कोयला खनन के फलस्वरूप कोल कमिर्यों में विभिन्न प्रकार के रोग जैसे न्यूमोकोनिओसिस‚ उच्च रक्त ताप‚ हृदय/फेफड़ों के रोग‚ गुर्दे की बीमारी आदि की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

  • खनन क्षेत्रों के आस-पास के क्षेत्र में निवास करने वाले तथा खनिक वर्ग आमतौर पर लगातार कोल डस्ट के संपर्क में रहने से श्वसन संबंधी बीमारियों के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं।  

  • कोयला गैसीकरण ऊर्जा उत्पादन के अधिक जल-गहन रूपों में से एक है।  

  • कोयला गैसीकरण से जल संदूषण‚ भूमि धंसान तथा अपशिष्ट जल के सुरक्षित निपटान आदि के बारे में चिंताएं उत्पन्न होती हैं।

  • अन्य महत्वपूर्ण तथ्य  

  • गैसीकरण के दौरान‚ कोयले को उच्च दबाव पर गर्म करते हुए ऑक्सीजन तथा भाप के साथ मिश्रित किया जाता है। इस अभिक्रिया के दौरान ऑक्सीजन और जल के अणु कोयले का ऑक्सीकरण करते हैं और सिनगैस का निर्माण करते हैं।  

  • कोयला गैसीकरण – कोयले को संश्लेषित गैस‚ जिसे सिनगैस भी कहा जाता है‚ में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है। 

  • इसमें कार्बन मोनोऑक्साइड (CO)‚ हाइड्रोजन (H2)‚ कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)‚ प्राकृतिक गैस (CH4) और जलवाष्प (H2O) के मिश्रण से सिनगैस का निर्माण किया जाता है।  

  • कोयला द्रवीकरण   

  • कोयला द्रवीकरण को कोल टू लिक्विड (Coal to liquid – CTL) तकनीक भी कहा जाता है।

  • यह डीजल और गैसोलीन का उत्पादन करने की वैकल्पिक पद्धति है‚ जो कच्चे तेल की कीमतों की बढ़ती हुई कीमतों को देखते हुए काफी सस्ती है।  

  • द्रवीकृत कोयला‚ पेट्रोलियम ईंधन की तुलना में CO2 का दोगुना अधिक उर्त्सजन करता है। यह बड़ी मात्रा में SO2  का भी उत्सर्जन करता है।  

  • कोल टू लिक्विड संयंत्रों से होने वाले CO2 उत्सर्जन को पारंपरिक कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों की तुलना में आसानी से और कम लागत में अभिग्रहण किया जा सकता है।  

  • अभिग्रहीत CO2 को भूमिगत भंडारण कुंडों में संग्रहीत किया जा सकता है।

  • निष्कर्ष   

  • गैस का परिवहन‚ कोयले के परिवहन की तुलना में बहुत सस्ता होता है। स्थानीय प्रदूषण समस्याओं का समाधान करने में सहायक होता है। पारंपरिक कोयला दहन की तुलना में अधिक दक्ष होती है‚ क्योंकि इसमें गैसों का प्रभावी ढंग से दो बार उपयोग किया जा सकता है। कोयला गैसें पहले अशुद्धियों को साफ करती हैं और विद्युत उत्पादन हेतु टरबाइन में इनका उपयोग किया जाता है। गैस टरबाइन से उत्सर्जित होने वाली ऊष्मा का उपयोग ‘भाप टरबाइन-जनरेटर’ में भाप उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है।